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नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी 26 मई 2014 से अब तक लगातार तीसरी बार वे भारत के प्रधानमन्त्री बने हैं तथा वाराणसी से दो बार लोकसभा सांसद भी चुने गये हैं। वे भारत के प्रधानमन्त्री पद पर आसीन होने वाले स्वतन्त्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं। इससे पहले वे 7 अक्तूबर 2001 से 22 मई 2014 तक गुजरात राज्य के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं 

मोदी की राजनीतिक यात्रा: आरंभ से मुख्यमंत्री बनने तक ( गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में ) 

नरेन्द्र मोदी की पहली ज्ञात राजनीतिक गतिविधि 1971 में हुई जब वे अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में दिल्ली में भारतीय जनसंघ के सत्याग्रह में शामिल हुए। यह सत्याग्रह युद्ध के मैदान में प्रवेश करने के लिए था, लेकिन इंदिरा गांधी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने मुक्तिवाहिनी को खुला समर्थन नहीं दिया और मोदी को थोड़े समय के लिए तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। विश्वविद्यालय के छात्र रहते हुए ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाने लगे, जिससे उनका जीवन संघ के निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारंभ हुआ।

मोदी ने अपने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुजरात में शंकरसिंह वाघेला का जनाधार मजबूत करने में भी मोदी की रणनीति प्रमुख रही। अप्रैल 1990 में जब केंद्र में मिली-जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लाई और 1995 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाई।

इसी दौरान, दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटनाएँ घटीं। पहली, सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी के रूप में मोदी का मुख्य सहयोग रहा। दूसरी, कन्याकुमारी से कश्मीर तक मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा भी मोदी की देखरेख में आयोजित हुई। इसके बाद शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया, जिससे केशुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बने और मोदी को दिल्ली बुलाकर भारतीय जनता पार्टी में संगठन की दृष्टि से केंद्रीय मंत्री का दायित्व सौंपा गया। 1995 में राष्ट्रीय मंत्री के रूप में उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम सौंपा गया, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया, जिस पद पर वे अक्टूबर 2001 तक काम करते रहे।

अक्टूबर 2001 में भारतीय जनता पार्टी ने केशुभाई पटेल को हटाकर नरेन्द्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंप दी।

विवाद एवं आलोचनाएँ

गोधरा कांड और उसके बाद के गुजरात दंगे: मोदी प्रशासन की प्रतिक्रिया और न्यायिक जाँच

27 फरवरी 2002 को अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों की ट्रेन को गोधरा स्टेशन पर मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने आग लगा दी, जिससे 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना के बाद समूचे गुजरात में भयंकर हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे, जिसमें 1180 लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश अल्पसंख्यक थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस हिंसा के लिए मोदी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग की। मोदी ने गुजरात की विधानसभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। बाद में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में 182 में से 127 सीटें जीतीं।



अप्रैल 2009 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक विशेष जाँच दल (SIT) को गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका की जाँच के लिए भेजा। यह जाँच दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी की शिकायत पर की गई थी। दिसंबर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने SIT की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं।

फरवरी 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य छिपाए गए हैं और नरेंद्र मोदी को सबूतों के अभाव में अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता। इंडियन एक्सप्रेस ने भी लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के खिलाफ साक्ष्य न मिलने की बात कही गई है, लेकिन उन्हें अपराध से मुक्त नहीं किया गया है। द हिंदू ने प्रकाशित किया कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को उचित ठहराया।

भारतीय जनता पार्टी ने मांग की कि SIT की रिपोर्ट को लीक करने के पीछे कांग्रेस का राजनीतिक स्वार्थ है और इसकी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अहमदाबाद के मजिस्ट्रेट को निष्पक्ष जाँच का निर्देश दिया। अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने पुष्टि की कि दंगे भीषण थे, लेकिन नरेंद्र मोदी का प्रत्यक्ष हाथ नहीं था। 7 मई 2012 को विशेष जज राजू रामचंद्रन ने रिपोर्ट पेश की कि नरेंद्र मोदी को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दंडित किया जा सकता है। हालांकि, SIT ने इस रिपोर्ट को दुर्भावनापूर्ण और पूर्वाग्रह से भरा बताया।

26 जुलाई 2012 को नई दुनिया के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिए एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने कहा, "2002 के दंगों के लिए मैं क्यों माफी मांगूं? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो मुझे सरेआम फांसी दे दी जानी चाहिए।" मोदी ने कहा कि अगर वह दोषी हैं तो उन्हें फांसी दी जानी चाहिए, लेकिन राजनीतिक मजबूरी के चलते उन्हें अपराधी कहा जाता है तो इसका कोई जवाब नहीं है। मोदी ने बार-बार यह तर्क दिया है कि गुजरात ने पिछले एक दशक में बहुत तरक्की की है, जिससे मुस्लिम समुदाय को भी फायदा हुआ है।

केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा, "पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फांसी देने जा रहा है?" 92 वर्षीय मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कहा कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के गुजरात में सभी मुसलमान खुशहाल और समृद्ध हैं, जबकि कांग्रेस हमेशा मुस्लिमों में मोदी का भय पैदा करती रहती है।

परिणाम :-  
                    प्रधान मंत्री मोदी ने अपने खिलाफ सभी सबुत को समाप्त कर दिया गया है और उनकी सरकार में बहुत सारे गलत काम हुवा है जैसे उनकी सरकार ने किसानो के खिलाफ बिल लाया ताकि अडानी को फायदा हो लेकिन किसानो ने उनके खिलाफ आंदोलन किया जिस में कितने किसान मरगये कितनो ने अपने पियारो को खोया किया यही मोदी की सर्कार की काम का अंदाज है 

2024 New Sarkar
2024 में लोगो की उम्मीद है की इस साल सरकार बेरोजगार लोग को नौकरी देगी | धर्म की राजनीती नहीं करेगी और India को सबसे महँ देश बनाएंगे 



शपथ ग्रहण :- 9 जून को PM पद की शपथ लेंगे नरेंद्र मोदी? शुभ मुहूर्त के चलते 








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